अभिषेक का दिल बहुत जोर जोर से धड़क रहा था आज वह अपने सपने को सच करने जा रहा था उसका सपना था की व

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अभिषेक एक बहुत ही गरीब परिवार का लड़का था वह परिवार की ख़राब पारिवारिक परिस्तिथि के चलते दुकान में काम किया करता था परन्तु बुद्धि से बड़ा ही कुशाग्र था दुकान के मालिक गोपालजी भी उसकी बुद्धिमता और तीव्र बुद्धि के कायल थे उनके कोई संतान नहीं थी वे भी अभिषेक से वह बहुत प्यार करते थे उनकी पत्नी आशा तो उसे अपना पुत्र ही मानती थी उसके खाने पीने का बहुत धयान रखती थी गोपालजी अभिषेक को उसकी पगार के अलावा पढने लिखने के लिए अतिरक्त पैसे दिया करते थे और महीने में उनकी पत्नी उसे एक न एक नया कपडा जरूर देती थी दुकान में जब कोई नहीं आता था तो गोपालजी अभिषेक को पढने के लिए बोलते थे अभिषेक भी उनके साथ बहुत घुल मिल गया था उसे देख कर एसा लगता था की वह उनका अपना पुत्र हो कभी कभी तो अभिषेक उनसे नाराज भी हो जाता उनसे बात नहीं किया करता था तब दोनों उसे बड़े पयार से मिन्नत करके उसे मानते थे आस पास के दुकानदार उनका मजाक बनाया करते थे बोलते थे गोपालजी ने एसा नौकर पला है की गोपालजी और उनकी पत्नी को ही नोकर बनाये हुए है उन लोगों एसा कहना था की एक दिन वह लड़का उनेहे बहुत बड़ा धोका देगा तब उन्हें पता चलेगा उन सबका मानना था की अधिक पायर देने से बेटा बिगड़े भेद देने से नारी लोभ देने से नोकर बिगड़े और धोका देने से यारी अभिषेक को भी अपने मालिक बहुत पसंद थे अभिषेक बड़ा होकर बहुत ही धनवान व्यक्ति बनना चाहता था अभिषेक के घर में केवल माता है जो की बहुत बूढी है लोगों का कहना है की अभिषेक उनका अपना बेटा नहीं है वह उन्हें मंदिर के पास मिला था तब उनकी उम्र 63 साल थी आज उनकी उम्र 80 साल है इसलिए आशा दुकान से कभी रश, बिस्कुट , मेवे और कपडे उसकी माँ के लिए भिजवाती रहती थी अभिषेक का घर बाज़ार से 2 किलोमीटर दूर गाँव में था वहां तक कोई गाड़ी नहीं जाती थी पैदल ही आना जाना पड़ता था आज अभिषेक दुकान नहीं आया था गोपालजी और आशा बहुत देर तक उसका इन्तेजार करते रहे अभिषेक के न आने के वजह से उन दोनो का मन न तो घर में और न दुकान में लग रहा था गोपालजी तो फिर भी दुकान में थे तो लोगों को सामन देने और पैसे लेने में समय निकल ही रहा था पर आशा का घर में बैठे बैठे मन बहुत ही उदास हो रहा था वो सोच रही थी कहीं अभिषेक बीमार तो नहीं हो गया अगर वो बीमार हो गया होगा तो कोन उसकी देख भाल करेगा उसकी माँ तो वेसे भी बहुत बूढी है और कहीं एसा तो नहीं उसकी माँ की ही तबियत ख़राब हो आशा को लग रहा था की गोपाल जी कितने कठोर दिल के हैं उन्हें अभिषेक की जरा भी चिंता नहीं अब मैं इन्हें बोलूं भी तो केसे बोलू की अभिषक की खोज खबर करके आओ आखिर थक हार कर आशा ने गोपालजी से बोली ही दिया सुनिए क्या आप अभी जा कर अभिषेक का पता लगा कर आओ की वह आज क्यूँ नहीं आया है? गोपालजी भी मनो इसी बात का इन्तेजार कर रहे थे की कोई उसे बोले की अभिषेक का पता लगाकर आना है आशा का बोलना था और गोपालजी घर की चप्पलों में ही बिना कपड़े बदले अभिषेक के घर की और दोड पड़े आशा भी उनका उतावला पन देख अपनी हंसी नहीं रोक पाई और मन ही मन सोचने लगी भले ही वे बहार से कठोर नजर आते हूँ पर है बड़े कोमल ह्रदय के और आशा की ऑंखें डबडबा ने लगी उनके विवाह को 30 साल हो गए थे और उनकी कोई संतान नहीं थी फिर भी गोपालजी और आशा का जीवन बहुत ही मधुर था कमी थी तो केवल एक उतराधिकारी की जो उनके बुढापे में उनकी सुध ले सके गोपालजी और आशा को लगता था की वे अभिषेक को गोद लेलें पर यह बात करें भी तो किस से बस यही सोच आज तक यह बात उनके मन में ही दबी हुई है गोपालजी ने दुकान से जो दौड़ लगनी शुरू की तो अभिषेक के घर पर जाकर ही रुके इतना उतावलापन तो पन तो किसी छोटे बच्चे में दिख सकता था अपनी उम्र के हिसाब से गोपालजी ने आज बहुत तेजी से 2 किलोमीटर का सफ़र तय किया अभिषेक की मट्टी और पत्थर के टूटे फूटे घर के आगे पहुँच हांफे हुए अभिषेक को आवाज दी अभिषेक ओ अभिषेक अभिषेक की बूढी माँ बहार आई गोपालजी को देख बहुत खुश हुई वह उनके और उनकी पत्नी के द्वारा समय समय पर उनके द्वारे किये गए उपकार के लिए क्र्तग्यता प्रकट कर रही थी पर गोपाल जी को तो फिलहाल केवल अभिषेक की ही चिंता थी गोपाल जी ने पुछा अभिषेक कहाँ हैं आज वह काम पर क्यूँ नहीं आया अभिषेक की माँ ने बताया कल आते वक़्त गाँव के बच्चोन के साथ नदी में नहाया था इसी वजह से सर्दी और बुखार हुवा है अन्दर लेटा हुवा है गोपाल जी सुनते ही बहुत विचलित हो गाये और तुरंत लपक कर घर में अन्दर