अपना ये रिश्ता

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Hindi Poems by Vivek (विवेक की हिंदी कवितायेँ) #hindipoetry #shayri #kavita

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अपना ये रिश्ता न अपनों वाली आत्मीयता है और, न अजनबियों वाली औपचारिकता। असहज हो जाती हो मेरी मौजूदगी में, आखिर कैसा है अपना ये रिश्ता। आखिर … न कभी अनुराग से मनुहार किया और, न ही कभी नम्रता से परिपूर्ण निवेदन। चंद लफ़्ज़ों में कर लेती हो जरुरत की बात, आखिर कहाँ सीखी ये व्यवहार कुशलता। आखिर … न दिखी कभी स्नेहमयी सहज संवेदना और, न ही कभी शिष्टाचार की कृत्रिम कृतज्ञता। फिर भी रोज होती हैं अपनी बातें दो चार, आखिर क्या है इस संवाद की विवशता। आखिर … न कभी देखता हूँ बेबाक बिंदास ठहाके और, न ही लिपस्टिक सी चिपकी नकली मुस्कान। बस शून्य में कुछ ढूंढता एक भावहीन चेहरा, आखिर क्यों लुप्त हो जाती है चपलता। आखिर … न कभी मेरे कंधे पर सिर रख रोती हो, और न ही गम छिपा कहती हो की सब ठीक है। झिझकती हो जब आँसू पोंछने हाथ बढ़ाता हूँ, आखिर कौन दुःख है जो दिल में कसकता। आखिर … न कभी मुझसे मन की बात कहती हो, और न ही कभी कुछ अनर्गल बोल छिपाती हो। कैसे जानूँ मैं जो वाकई तेरे दिल में है, आखिर इंसान हूँ मैं न की कोई फरिश्ता। आखिर … बहुत देखा है अपनों को अजनबी बनते। और अजनबियों से बनते नाता अपना। पर ये जो है ना अपना और ना बेगाना। आखिर कैसा है अपना ये रिश्ता। आखिर … स्वरचित व मौलिक ~ विवेक (सर्व अधिकार सुरक्षित) --- Send in a voice message: https://anchor.fm/vivek-agarwal70/message