एकाग्रता
मन बहुत चंचल है और वह हमें किसी एक सोच पर टिकने ही नहीं देता | मन को काबू नहीं किया जा सकता | लेकिन यह ‘ध्यान’ के विषय में कहा जाता है | जिसे हम एकाग्रता से जोड़ लेते हैं | जबकि एकाग्रता और ध्यान में बहुत फर्क है | हम ने पिछले भाग में भी बताया था कि ‘ध्यान’ में ध्यान अभौतिक पर केन्द्रित करने को कहा जाता है और मन इसमें सबसे बड़ा बाधक होता है | मन को काबू नहीं कर सकते, उसे रोका नहीं जा सकता उसे केवल दिशा दिखाई जा सकती है उस अनन्त और शान्ति की ओर लेकर जाना होता है जहाँ वह हो कर भी नहीं होता और इसी स्थिति को आध्यात्म में शुन्यव्स्था या अ’मन’ कहा जाता है | ऐसी स्थिति में मन एक दर्पण की तरह हो जाता है | कोई उसके सामने आएगा तो तस्वीर दिखेगी वरना दर्पण, दर्पण हो कर भी नहीं है ||
एकाग्रता
मन बहुत चंचल है और वह हमें किसी एक सोच पर टिकने ही नहीं देता | मन को काबू नहीं किया जा सकता | लेकिन यह ‘ध्यान’ के विषय में कहा जाता है | जिसे हम एकाग्रता से जोड़ लेते हैं | जबकि एकाग्रता और ध्यान में बहुत फर्क है | हम ने पिछले भाग में भी बताया था कि ‘ध्यान’ में ध्यान अभौतिक पर केन्द्रित करने को कहा जाता है और मन इसमें सबसे बड़ा बाधक होता है | मन को काबू नहीं कर सकते, उसे रोका नहीं जा सकता उसे केवल दिशा दिखाई जा सकती है उस अनन्त और शान्ति की ओर लेकर जाना होता है जहाँ वह हो कर भी नहीं होता और इसी स्थिति को आध्यात्म में शुन्यव्स्था या अ’मन’ कहा जाता है | ऐसी स्थिति में मन एक दर्पण की तरह हो जाता है | कोई उसके सामने आएगा तो तस्वीर दिखेगी वरना दर्पण, दर्पण हो कर भी नहीं है ||
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