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संजीव शुक्ला जी पारम्परिक हिंदी में छंद और सवैयों की प्रस्तुति करते हैं और साथ ही नवयुवकों को हिंदी भाषा के लिए प्रेरित करते है। उन्होंने काव्य के प्रति अपने रुझान को बड़ी ही सादगी के साथ साझा किया है। हमे इनके जैसे लोगों की समाज में बहुत जरूरत है जो युवा पीढ़ी को भाषा के असल अस्तित्व को दिखते है।