Society & Culture
More about Muskan : मुस्कान सत्यम्, जो उत्तर प्रदेश के एक छोटे-से शहर गोरखपुर की रहनेवाली हैं, प्रस्तुत है आप सबके समक्ष अपनी एक कविता लेकर। तकनीकी शिक्षा से संबंधित होने के साथ-साथ, वह रचनात्मक गतिविधियों में भी समान रुचि रखती हैं। कविताएँ, उनके लिए अपने मन के भाव को आप सबसे साँझा करने का एक माध्यम मात्र है। अमूमन वह कविताएँ, उक्तियाँ व नज़्म लिखा करती हैं। उम्मीद है आप सबको उनकी ये रचना पसंद आयेगी।
इंसानियत की सीख :
=================
मैं मंदिर में भी जाती हूँ,
दरग़ाह पर भी सिजदा निभाती हूँ।
वाहे गुरु की मेहर हो, सो गुरुद्वारे में शीश नवाती हूँ।
गिरिजाघरों में हर रविवार, मैं मोमबत्तियाँ जलाती हूँ।
उस ईशा मसीह को हर पल, मैं साथ अपने पाती हूँ।।
सीखी है रामायण यहाँ, और सीखा है मैंने क़ुरान भी।
गुरु ग्रन्थ साहिब भी पढ़ा है, और पढ़ा है बाइबिल का अलौकिक ज्ञान भी।।
वो चाहे राम हों या रहमान हों,
मेरे लिए सब समान हों।
शहादत अर्जुन देव की हो,
या फिर मिली यीशु को पीड़ा अपार हो।
मेरे हृदय में हमेशा उनका परस्पर सम्मान हो।।
धर्म और मज़हब के संकीर्ण दायरों से मैं दूर हूँ।
हर धर्म के उसूलों का करती, आदर मैं भरपूर हूँ।।
हाँ, देखा मैंने समाज को जाति-पाति में बँटते हुए।
गाँव-गाँव, घर-घर में, भाई-भाई को लड़ते हुए।।
हर जाति से पायी मैंने, थोड़ी-सी समझदारी है।
मिली जो सीख उन सबसे, वो मुझको बहुत ही प्यारी है।।
ब्राह्मण से सीखा मैंने चातुर्य,
और क्षत्रिय से सीखा पराक्रम है।
वैश्य से मिली मितव्ययिता की सीख,
और हरिजनों से सीखा,
संयम और सेवा का निरंतर क्रम है।।
अपने इन सब तजुर्बों पर, मैं जब भी करती विचार हूँ।
अचंभित-सी रह जाती हूँ, जब करती सत्य से सरोकार हूँ।
कि धर्म, मज़हब, रंग, रूप और जाति कोई हो,
इनमें छुपी इंसानियत, अब तक जो सोई हो।
है कौन यहाँ जो कह दे इस पर, माँ वसुंधरा न रोई हो?
जन्मा जिसने हमें, मिल जाते हैं जिसमें सभी।
उस धरती माँ की व्यथा, क्या समझी है हमने कभी?
सीने पर जिसके खींच दी, पत्थर से हमने लक़ीर है।
हाय! हर मुल्क़ की यहाँ कैसी अज़ीब तक़दीर है।
हर शख़्स की रगों में बहता जहाँ, सिर्फ़ इंसानियत का ख़ून है।
है एक-दूजे के लहु का प्यासा वो, ये कैसा अंधा जुनून है?
इन्हीं प्रश्नों में खोयी मैं, दे रही उस स्वप्न को आकार हूँ।
जहाँ ईश्वर नहीं बँटा है धर्मों में, वह ब्रम्ह सदैव से निराकार है।।
जहाँ एकता में बँधे हों हम सब, यही मानवता की सच्ची पुकार है।
भाई को देने रक्त जहाँ, भाई खड़ा तैयार है।।
है कुछ ही दिनों की बात, ये स्वप्न होना साकार है।
ये मेरी रूह की आवाज़ है,
की होने को इंसानियत का नया आग़ाज़ है।
हाँ, बस होने को इंसानियत का स्वप्न ये साकार है।।
*©मुस्कान सत्यम्*
*@muskan_thevoiceofsoul*