Society & Culture
Featuring Sandhya Kanojiya !
More about Sandhya Kanojiya : नाम - संध्या कनौजिया शहर - प्रयागराज ( उत्तर प्रदेश)।पढ़ना और पढ़ाना पसंद है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी ए व एम ए के साथ-साथ राज्य विश्वविद्यालय से बी एड उत्तीर्ण है। हिंदी साहित्य में रुचि रखने के साथ साथ कविताएं लिखना भी पसंद है।अपने विचारो ओर भावो को ये कलम के माध्यम से व्यक्त करने का प्रयास करती है।
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शब्दकोश में ऐसा कोई शब्द नहीं :
शब्दकोश में ऐसा कोई शब्द नहीं,जो एहसास करा दे क्या है भूख,जिसके पास खाने की कमी नहीं,वह क्या जाने क्या है भूख।
देखा है मैंने लोगों को पेट में कपड़ा बांधे हुए,भूख का एहसास ना हो उन्हें काम को करते हुए,दिन भर परिश्रम करके भी वह पेट भर खाना न पाते हैं,वह तो क्या उनके बच्चे भी अधभरे पेट दबा सो जाते हैं।
देखा है मैंने भूख से तड़पते उन बेचारों को,जिन के दर्द में चीख नहीं करते सहन भूख के अंगारों को,कूड़े में भी खोजते हैं अपने लिए वो रोटी,यह वह रोटी है जो कुछ लोगों के लिए कुछ भी नहीं है होती।
फेंक देते हैं वह खाना जो हो जाता है बासी,उन्हें क्या पता इस सूखी रोटी के बहुत लोग हैं आशी,हम इंसानों की नहीं जीवो की भी यही कहानी,हमारी कहानी बयां हो जाए जीवो की रह जाए बेजुबानी।
खोजते हैं अपना वह भोजन दर-दर भटक कर,निष्प्राण भी हो जाते हैं पल-पल भूख से तड़प कर,चिड़ियों को देखा है मैंने चंद दानों की खोज में,हर जीव भटकता है यहां भूख शांत करने रोज में।
प्यार मोहब्बत के दर्द तो बाद की बात है,यहां तो जीवन जीने के दर्द की हो रही बात है,इंसानियत ही खत्म हो गई क्या इस संसार में,हर दूसरा मर रहा यहां अन्न के अभाव में।
लोग लगे हैं यहां बड़े इलाजों की खोज में,कोई भूख से ना मरे सोचा किसी ने किसी रोज में,हे मानव ना भूल जाओ तुम इस कदर मानवता,जहां मानवता ही ना रहेगा सर्वनाश हो जाता।