कोपल की कहानी

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Hindi Poems by Vivek (विवेक की हिंदी कवितायेँ) #hindipoetry #shayri #kavita

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कोपल की कहानी कोमल कोपल के कोने से, ढुलक पड़ी बूँदें ओस की। सकुचाई सिमटी सी वो पत्ती, कर अर्पित निधि कोष की। अंशुमाली क्या स्वीकार करेंगे, सप्रेम समर्पित स्नेह अर्घ्य यह। धरा ने जिसे धरा सहेज कर, कहीं किधर न जाये बह। अवनि आखिर जननी है, पादप, पत्ती पुष्पों की। कैसे जाने दे व्यर्थ भला, प्रेम-भेंट निज पुत्री की। बहुत हुआ ये तिरस्कार, मन ही मन वसुधा ने ठाना। क्या अपराध किया कोपल ने, होगा सूर्य को आज बताना। पूछा प्रश्न भूमि ने भानु से, क्यूँ किरणें कोपल से कतराती। स्नेह-रहित क्यूँ दुहिता उसकी, प्रिय प्रेम से वंचित रह जाती। उत्तर दिया सूर्य ने सकुचाते, मैं तो प्रतिदिन यहाँ आता हूँ। विशाल वटवृक्ष के साये में, कोपल को सोते पाता हूँ। कैसे किरणें कोपल को चूमें, जब मध्य हमारे वट की काया। सम्पूर्ण समर्पण से संभव है, हट जाये ये काली छाया। सन्देश उसे तुम दे दो मेरा, परिपक्व उसे बनना होगा। मेरे स्नेह की किरणों को पाने, अस्तित्व स्वतंत्र करना होगा। मेरे स्वभाव में भेद नहीं है, मुझे पक्षपात न आता है। जिसने जितना जतन किया, उतना स्नेह वो पाता है। बिसरी बातों में खोने से, नव निर्माण नहीं होता। वही नया फल पाता है, जो प्रयास-बीज बोता। प्रभु प्रदत्त वर है ये जीवन, इसको न ऐसे व्यर्थ करो। नया उद्देश्य बना कर अपना, आगे ही आगे कदम धरो। ~ विवेक अग्रवाल (स्वरचित, मौलिक) --- Send in a voice message: https://anchor.fm/vivek-agarwal70/message