398: मेरे वतन, मेरे प्यारे वतन, कैसे मनाऊं तुम्हारी आजादी का जश्न?

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मेरे वतन, मेरे प्यारे वतन कैसे मनाऊं तुम्हारी आजादी का जश्न? तुम्हारी मिट्टी लगा लूं ललाट पे या तुम्हारी हवा में गहरी सांस लेकर फुला लूं सीना अपना गर्व से या फिर तुम्हारे चरण पखारते समंदर से साफ करूं प्लास्टिक का कचरा जो हम देशभक्तों ने फैलाया है? मेरे वतन, मेरे प्यारे वतन क्या मैं भी दे दूं जान अपनी तुम्हारी सरहद पर या ले लूं जान उनकी जो नहीं करते तुम्हारी जै-जैकार तुम्हारी मिट्टी से उपजे फल, फूल, अन्न खाकर खुशियां मनाऊं या घर में घुसकर मारूं उन्हें, जिनका खाना मुझे पसंद नहीं बाढ़, सूखे से बदहाल हमवतनों के लिए कुछ करूं या मज़हब, जात, निशान पूछूं उन्हें गले लगाने से पहले मेरे वतन, मेरे प्यारे वतन कैसे मनाऊं तुम्हारी आजा़दी का जश्न मैं जो दिन भर पिसता हूं गड्ढे-भरी सड़कों पर, धक्के खाता हूं, ट्रेनों, बसों, मेट्रो में बिन शिकायत किये करता जाता हूं काम अपना ख़ामोशी-से क्या इतना काफी नहीं है हवा बीमार है, पानी के लिए रोज़ होती यहां मार है अस्पताल से बेहतर श्मशान है और अदालत के बाहर पीढियों की कतार है फिर भी चुपचाप सुनता रोज़, अच्छा सब समाचार है मेरे वतन, मेरे प्यारे वतन कैसे मनाऊं तुम्हारी आजा़दी का जश्न मैं क्या तू सिर्फ नदी, पहाड़, झरने जंगल, जहाज़, टैंक और हथगोले भर है तेरी सरहदें सिर्फ ज़मीन पर खींची है और तेरी शान सिर्फ हुक्म़रानों की कमान पर है तुम्हारे विकास के लिए  अगर मुझे मेरे घर से खदेड़ा जाता है तो तू भी तो थोड़ा बेघर होता होगा मेरे खाने, मेरे पहनावे के चलते अगर मेरी जान ली जाती है तो तू भी तो थोड़ा मरता होगा अगर मेरी आजा़दी को मेरे घर में नज़रबंद किया जाता है तो तुम्हें भी तो गुलामी का कांटा चुभता होगा ये मिट्टी तेरी, तो उससे बना मेरा जिस्म किसका ये हवा तेरी, तो मेरी सांसें किसकी ये नदियां तेरी, तो मेरे रगों में बहता खून किसका अगर तू जीत गया, तो मेरी ये हार किसकी है अगर तू आजा़द है, तो मेरे पैरों में बंधीं ये बेड़ियां किसकी है मेरे वतन, मेरे प्यारे वतन तुझे तेरी आजा़दी मुबारक लेकिन जबतक मेरी ज़बान पर पहरा है मेरी सोच, मेरे दि़माग पर झूठ का कोहरा है मेरी क़लम सियाही बिन सूखी है और तेरे सिर मेरे खून से लतपथ सेहरा है तू भी आजा़द कहां है?