अरविंदो और तपन जो की कोलकत्ता के रहने वाले हैं डिस्कवरी चैनल पर एक documentery फिल्म देखि थी

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अरविंदो और तपन अभी अभी वान पहुंचे हैं वान रूपकुंड और बैदनी बुग्याल तक जाने के लिए गाड़ियों का अंतिम पड़ाव है इसके आगे सड़क नहीं है पैदल ही जाना होता है हाल ही में अरविंदो और तपन जो की कोल्कता के रहने वाले हैं डिस्कवरी चैनल पर एक documentery फिल्म देखि थी वह documentery रूपकुंड में स्तिथ हिम झील में पड़े हजारों साल पुराने 500 से भी अधिक नर कंकालों के बारे में थी यह झील लगभग ५०३० मीटर की ऊंचाई पर स्तिथ है कंकालों के कार्बन डेटिंग से पता चला है की ये १२वी से १५वी सदी के बीच के हैं अरविंदो और तपन दोनों गहरे मित्र तो हैं ही परन्तु दोनों कोलकत्त यूनिवर्सिटी में Archaeology डिपार्टमेंट में पीएचडी के शोध छात्र भी हैं अरविंदो और तपन सामाजिक कार्यों से भी जुड़े हुए हैं वो अनाथ गरीब और बेसहारा लोगों के लिए भी काम भी करते हैं अब तक लग भाग ३०० से भी ज्यादा लोगों की आर्थिक और सामाजिक रूप में मदद कर चुके हैं रूपकुंड उत्तराखंड के एक पहाड़ी जिले चमोली के देवल ब्लाक में स्तिथ है दोनों दोस्तों ने रूपकुंड और बैदनी बुग्याल घूमने का प्लान बनाया है और ट्रैकिंग गाइड के लिए हर्शपाल सिंह रावत से फ़ोन पर ही बात कर ली है हर्षपाल एक स्थानीय गाइड है और और वहां घूमने आने वाले लोगों को नेचर ट्रैकिंग पर लेजाता है आज यहीं आराम करने के बाद वे लोग कल १० बजे ट्रैकिंग शुरू करेंगे वे भी बहुत थके हुए हैं कोलकत्ता से वान पहुँचने में उन्हें लगभग 15 घंटे लगे पहले हवाई जहाज से देहरादून और फिर टैक्सी से वाँन लेटते ही दोनों को गहरी नींद आगई और उनकी नीद तब खुली जब 9 बजे होटल के वेटर ने उन्हें चाय देने के लिए उनके कमरे का दरवाजा खटखटाया हालाँकि उन्होंने चाय का आर्डर नहीं दिया था पर हर्ष पाल ने वह चाय भिजवाई थी क्यूंकि वो जनता था की वे बहुत थके हुए थे और अपने आप नहीं उठने वाले और उन्हें अभी नहीं उठायागया तो ट्रैकिंग पर जाने के लिए देर हो जायेगी दोनों ने चाय पी और जल्दी से तैयार हो गए तब तक हर्ष पाल ने सभी तय्यारी कर ली थी निकलते निकलते लगभग 10.30 बज गए थे यहाँ से कुछ दूर तक तो रास्ता आसान था पर उसके बाद लगभग दिन भर खड़ी चढ़ाई करनी होगी अभी वे थोडे आगे ही चले होंगे तो उन्हें बर्फ से ढके बहुत ही सुन्दर पहाड़ दिखाई दिए उन्होंने ट्रैकिंग तो बहुत की थी पर एसा नजारा पहली बार देख रहे थे चरों और देवदार के बहुत ही सुन्दर जंगल दिखाई दे रहे थे और जंगलों से उपर हरी घास की मखमली चादर बिछी दिख रही थी और उस से ऊपर बर्फ के पहाड़ उन्हें बड़ा अच्छा लग रहा था रस्ते में उन्हें हर्ष पाल ने कुछ जगली फल भी खिलाये ट्रैकिंग के समय उन्होंने इतने सुन्दर द्रश्य देखे की वे अपने आप को फोटो खींचने से नहीं रोक पाए रस्ते के एक तरफ पहाड़ और दूसरी तरफ हजारों फीट गहरी खाई थी अरविंदो और तपन ने खाई की तलहटी को देखने का प्रयास किया तो डर के मरे कलेजा मूह को आगया अरिविन्दो ने तब तपन को बोला तपन इस खाई की गहराई इंतनी है की यही कोई गिर जाये तो शायद तलहटी तक पहुँचने में ही १० मिनट लग जाएँगे लगभग 2 घंटे की चढ़ाई के बाद भी वे विश्राम करने की जगह नहीं पहुँच पाए थे की अँधेरा हो गया था अधिक ऊंचाई ऑक्सीजन की कमी अत्यधिक ठण्ड और थकान की वजह से वे बहुत धीरे चल पाए थे तभी हर्शपाल ने बोला दादा जल्दी मौसम अच्छा नहीं है अरबिंदो बोला हर्शपाल तुम तो हा साथ फिर हमको किसका डर और वेसे भी हम तो बहुत ट्रैकिंग कर चुके हैं हर्ष पाल भी चिंतित थे क्यूंकि कोहरे, अँधेरे और फुहार की तरह बारिश भी होनी शुरू हो गयी थी रास्त शंकरा फिसलन भरा और बहुत ही उबड़ खाबड़ था हर्ष पाल अचानक रुके और उन्हें कुछ बोलने ही वाले थे की लैंड स्लाइड हो गयी अरविंदो और तपन दोनों उस गहरी खाई की तरफ मलबे के साथ फिशल गए जब लैंड स्लाइड हुवा तो चरों और घुप्प अन्दर और पत्थरों का इतना शोर हुवा की वे एकदूसरे को न तो कुछ बोल पाए और न ही किसी की कोइ आवाज सुनाई दी क्यूंकि यह स्थान अधिकतर समय बर्फ से ढाका रहता है तो पहाड़ पर घास और पेड़ नाम मात्र के लिए होते है यही कारण है की लैंड स्लाइड में बहुत बड़ी चट्टानें और पत्थर मट्टी बारिश के कारण पहाड़ से अचानक नीचे खिसक जाती हैं अरविंदो अपने आप को भाग्य शाली समझ रहा था की वह इतनी बड़ी बड़ी चट्टानों और मलबे की चपेट में नहीं आये और अभी तक जीवित है और कुछ मामूली