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प्रकृति की आराधना में भारतीय संस्कृति की आत्मा बसती है। वृक्ष,जल-जंगल,पशु-पक्षी, पवन-पहाड़ ये सब हमारे पूज्य हैं। पर्व और कर्मकांड तो इस भावना को व्यक्त करने के बस प्रतीक भर हैं, जिनके पीछे एक विराट संदेश है वही संदेश जिसकी प्रतिपुष्टि आज का वैज्ञानिक समाज करता है। 'Nature conservation', 'ecological balance' जैसी संकल्पनाएं भारतीय मनीषियों की दूरदृष्टि और तर्कसंगत सोच में सदियों पहले व्याप्त हो चुकी थीं। और गोवर्धन-पूजा उसी सोच का मूर्त स्वरूप है। प्रकृति की पूजा के साथ साथ गोवर्धन पूजा स्वावलंबन, आत्मनिर्भता, सहकारिता-सहभागिता की भी शिक्षा देती है।