Miscellaneous
*माटी का दिया माटी का तन, दीप जले है तो माटी में प्राण फूंक दे ठीक वैसे जैसे आत्मा शरीर को जीता-जागता इंसान कर दे। *और दिया जले तब, जब सद्गुणों का अमृत कलश लेकर धन्वतरि और समृद्धि की देवी लक्ष्मी, सागर मंथन से प्रकट हों, जब कृष्ण नरकासुर का वध कर स्त्री-स्मिता को फिर से जगाएं,जब अवधपति राम सीता सहित अपनी नगरी आएं और रामराज की स्थापना कर समस्त देश को प्रसन्न करें, जब गोकुल में बसने वाले गोपाल, प्रकृति के वेग को प्रकृति के ही कवच से थामें और परेशान जीव-जन को अपनी सबसे छोटी उंगली पर पहाड़ थामकर आश्रय दें। जब सत्यदेव यम भी बहन यमुना के प्रेमाग्रह के सामने नत हों और यमुना के घर जीमने जाएं। *इन सभी पर्व-त्योहारों की मिली जुली रोशनी है हमारी पांच दिन की दीपावली। *दीपावली के इष्ट राम और कृष्ण हमारे भगवान भर नहीं हमारी संस्कृति-आकाश के सूरज और चाँद हैं वे इन त्योहारों से हमे याद दिलाते हैं मर्यादा का, नीति का, पुरुष और प्रकृति के बीच संतुलन का। *धन्वन्तरि का अमृत कलश हमारे स्वस्थ और निरोग जीवन की परिकल्पना है। लक्ष्मी-गणेश पूजन सुमति और सम्पन्नता की कामना है और गोवर्धन-अन्नकूट पूजन उन सभी प्राकृतिक संसाधनों का आह्वान है जिनके बिना हमारा जीवन तिलभर भी डोल नहीं सकता। *'मालिनी की पाठशाला' एक-एक कर के इन सब लौकिक प्रसंगों को दोहराएगी। आपके सामने कुरेदेगी दीप-पर्व की सारी झलकियों को जो परत दर परत हमारी सामूहिक चेतना पर सदियों से जमा हैं। *आइये सबसे पहले झलक देखते हैं धनतेरस की एक ऐसे पर्व की जो स्वास्थ्य की मंगल कामना करता है। *धनतेरस यानी वो तिथि जिस दिन हमारे पुराणों में वर्णित धन्वन्तरि की जयंती मनाई जाती है। मान्यता है जब देवताओं और असुरों ने सागर मंथन किया तब धन्वन्तरि ही सोने का अमृत कलश लेकर प्रकट हुए और इसीलिए आज भी सोने,चांदी और अन्य धातुओं के बर्तन धनतेरस को बेचे-खरीदे जाते हैं। मान्यता ये भी कहती है कि धन्वन्तरि ही आर्यावर्त के प्रथम वैद्य हैं और अपनी आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जनक भी। कहानियों से इतर हम धनतेरस के प्रतीको पर गौर करें तो यह पर्व निरोगी काया और अच्छे स्वास्थ्य का द्योतक है। ये कहा भी जाता है कि 'पहला धन निरोगी काया' हमारा शरीर स्वस्थ होगा तभी हम संसार में कुछ साध सकते हैं, निरोगी काया ही जगत को उपयोगी योगदान दे सकती है। स्वास्थ्य और समृद्धि में बिल्कुल सीधा संबंध है। *याद रहे नई पीढ़ी के लिए स्वामी विवेकानंद का भी यही संदेश था कि 'स्वस्थ तन में ही स्वस्थ/सबल मन का निवास होता है' और धन्वन्तरि पूजा इसी संदेश की हर साल पुनर आवरित्ति करती है।