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ज़िंदगी में कभी कभी ऐसा दौर आता है जब तकलीफ़ गुनगुनाहट के रास्ते बाहर आना चाहती है। उसमें फँसकर ग़मे-जानाँ और ग़मे-दौराँ तक एक हो जाते हैं। ये ग़ज़लें दरअसल ऐसे ही एक दौर की देन हैं।
यह ख़तरनाक सच्चाई नहीं जाने वाली
कहाँ तो तय था..